श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 82: श्रीराम का अगस्त्य-आश्रम से अयोध्यापुरी को लौटना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  7.82.14 
 
 
एवमुक्तस्तु मुनिना प्राञ्जलि: प्रग्रहो नृप:।
अभ्यवादयत प्राज्ञस्तमृषिं सत्यशीलिनम्॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  सम्मानित महर्षि के ऐसा कहने पर बुद्धिमान राजा श्रीराम ने हाथ जोड़कर, अपनी भुजाओं को ऊपर उठाया और उस पवित्र तथा सत्यपरायण महर्षि को सम्मानपूर्वक प्रणाम किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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