स तैर्ब्राह्मणमभ्यस्तं सहितैर्ब्रह्मवित्तमै:।
रविरस्तंगतो राम गच्छोदकमुपस्पृश॥ २२॥
अनुवाद
श्रीराम ! सूर्यनारायण वहाँ उपस्थित ज्ञानी ब्राह्मणों द्वारा पढ़े गए उस वेद मंत्र को सुनकर और उसी रूप में पूजा पाकर अस्ताचल को चले गए। अब आप भी जाएं और आचमन और स्नान आदि करें।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे एकाशीतितम: सर्ग: ॥ ८ १॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें इक्यासीवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ८ १॥