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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 15
श्लोक
7.80.15
त्वां प्राप्य तु वधो वापि पापं वापि सुदारुणम्।
भक्तं भजस्व मां भीरु भजमानं सुविह्वलम्॥ १५॥
अनुवाद
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‘‘तुम्हें प्राप्त कर लेनेपर मेरा वध हो जाय अथवा मुझे अत्यन्त दारुण दु:ख प्राप्त हो तो भी कोई चिन्ता नहीं है। भीरु! मैं तुम्हारा भक्त हूँ। अत्यन्त व्याकुल हुए मुझ अपने सेवकको स्वीकार करो’’॥ १५॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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