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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 77: महर्षि अगस्त्य का एक स्वर्गीय पुरुष के शवभक्षण का प्रसंग सुनाना
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श्लोक 5
श्लोक
7.77.5
पद्मोत्पलसमाकीर्णं समतिक्रान्तशैवलम्।
तदाश्चर्यमिवात्यर्थं सुखास्वादमनुत्तमम्॥ ५॥
अनुवाद
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पद्म और उत्पल के फूलों से झिलमिलाता हुआ वह परम उत्तम सरोवर आश्चर्यजनक लग रहा था। उसका जल पीने में अत्यन्त सुखद एवं स्वादिष्ट था। सेवार नामक जलकुंभी का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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