श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 77: महर्षि अगस्त्य का एक स्वर्गीय पुरुष के शवभक्षण का प्रसंग सुनाना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  7.77.21 
 
 
इत्येवमुक्त: स नरेन्द्र नाकी
कौतूहलात् सूनृतया गिरा च।
श्रुत्वा च वाक्यं मम सर्वमेतत्
सर्वं तथा चाकथयन्ममेति॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  नरेश्वर! मैंने कौतूहलवश मधुर वाणी में उन स्वर्गीय पुरुष से इस प्रकार पूछा, तब मेरी बातें सुनकर उन्होंने वह सब कुछ मेरे सामने इस तरह से बताया।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे सप्तसप्ततितम: सर्ग: ॥ ७ ७॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें सतहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ७ ७॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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