श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 77: महर्षि अगस्त्य का एक स्वर्गीय पुरुष के शवभक्षण का प्रसंग सुनाना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  7.77.20 
 
 
कस्य स्यादीदृशो भाव आहारो देवसम्मत:।
आश्चर्यं वर्तते सौम्य श्रोतुमिच्छामि तत्त्वत:।
नाहमौपयिकं मन्ये तव भक्ष्यमिमं शवम्॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  हे देवतुल्य तेजस्वी महापुरुष! आपके दिव्य स्वरूप और आपके द्वारा किया जाने वाला निंदित आहार, ये दोनों ही बातें बड़ी ही आश्चर्यजनक हैं। इन दोनों स्थितियों का रहस्य मुझे समझाएँ क्योंकि मैं यह नहीं मानता कि शव आपके योग्य भोजन हैं॥ २०॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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