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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 7: उत्तर काण्ड
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सर्ग 75: श्रीराम का पुष्पकविमान द्वारा अपने राज्य की सभी दिशाओं में घूमकर दुष्कर्म का पता लगाना; किंतु सर्वत्र सत्कर्म ही देखकर दक्षिण दिशा में एक शूद्र तपस्वी के पास पहुँचना
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श्लोक 4
श्लोक
7.75.4
यथा शरीरो बालस्य गुप्त: सन् क्लिष्टकर्मण:।
विपत्ति: परिभेदो वा न भवेच्च तथा कुरु॥ ४॥
अनुवाद
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बालक पहले से ही अच्छे कर्म कर रहा है, लेकिन उसके शरीर की रक्षा कैसे की जाए, ताकि उसे कोई विपत्ति या खतरा न हो।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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