यमाश्रित्य तपस्तप्तं श्रोतुमिच्छामि तापस।
ब्राह्मणो वासि भद्रं ते क्षत्रियो वासि दुर्जय:।
वैश्यस्तृतीयो वर्णो वा शूद्रो वा सत्यवाग् भव॥ १८॥
अनुवाद
यमराज बोले- हे तपस्वी! जिस वस्तु के लिए तू तप कर रहा है, वह मैं सुनना चाहता हूँ। साथ ही यह भी बता कि तू ब्राह्मण है या क्षत्रिय? वैश्य है या शूद्र? तेरा कल्याण हो। सच-सच बता।