श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 75: श्रीराम का पुष्पकविमान द्वारा अपने राज्य की सभी दिशाओं में घूमकर दुष्कर्म का पता लगाना; किंतु सर्वत्र सत्कर्म ही देखकर दक्षिण दिशा में एक शूद्र तपस्वी के पास पहुँचना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  7.75.18 
 
 
यमाश्रित्य तपस्तप्तं श्रोतुमिच्छामि तापस।
ब्राह्मणो वासि भद्रं ते क्षत्रियो वासि दुर्जय:।
वैश्यस्तृतीयो वर्णो वा शूद्रो वा सत्यवाग् भव॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  यमराज बोले- हे तपस्वी! जिस वस्तु के लिए तू तप कर रहा है, वह मैं सुनना चाहता हूँ। साथ ही यह भी बता कि तू ब्राह्मण है या क्षत्रिय? वैश्य है या शूद्र? तेरा कल्याण हो। सच-सच बता।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.