श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 75: श्रीराम का पुष्पकविमान द्वारा अपने राज्य की सभी दिशाओं में घूमकर दुष्कर्म का पता लगाना; किंतु सर्वत्र सत्कर्म ही देखकर दक्षिण दिशा में एक शूद्र तपस्वी के पास पहुँचना  »  श्लोक 15-16
 
 
श्लोक  7.75.15-16 
 
 
राघवस्तमुपागम्य तप्यन्तं तप उत्तमम्।
उवाच च नृपो वाक्यं धन्यस्त्वमसि सुव्रत॥ १५॥
कस्यां योन्यां तपोवृद्ध वर्तसे दृढविक्रम।
कौतूहलात् त्वां पृच्छामि रामो दाशरथिर्ह्यहम्॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  देखकर राजा श्री राम जी उस तपस्वी के पास पहुँचकर और उग्र तपस्या करते हुए बोलते हैं कि उत्तम व्रत का पालन करने वाले तापस! तुम धन्य हो। तपस्या में निरंतर और दृढ़ पराक्रमी पुरुष! तुम्हारा जन्म किस जाति में हुआ है? मैं दशरथ का पुत्र राम तुम्हारा परिचय सुनना चाहता हूं इसलिए ये बातें पूछ रहा हूं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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