श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 75: श्रीराम का पुष्पकविमान द्वारा अपने राज्य की सभी दिशाओं में घूमकर दुष्कर्म का पता लगाना; किंतु सर्वत्र सत्कर्म ही देखकर दक्षिण दिशा में एक शूद्र तपस्वी के पास पहुँचना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  7.75.1 
 
 
नारदस्य तु तद् वाक्यं श्रुत्वामृतमयं यथा।
प्रहर्षमतुलं लेभे लक्ष्मणं चेदमब्रवीत्॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  नारद जी के अमृत के समान वाणी को सुनकर भगवान श्रीरामचंद्रजी का अत्यंत आनंद हुआ और उन्होंने लक्ष्मण जी से इस प्रकार कहा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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