श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 74: नारदजी का श्रीराम से एक तपस्वी शूद्र के अधर्माचरण को ब्राह्मण-बालक की मृत्यु में कारण बताना  »  श्लोक 28-29h
 
 
श्लोक  7.74.28-29h 
 
 
अधर्म: परमो राजन् द्वापरे शूद्रजन्मन:।
स वै विषयपर्यन्ते तव राजन् महातपा:॥ २८॥
अद्य तप्यति दुर्बुद्धिस्तेन बालवधो ह्ययम्।
 
 
अनुवाद
 
  राजन् ! द्वापर युग में भी शूद्रों का तपस्या करना बहुत बड़ा अधर्म माना जाता है। (फिर त्रेतायुग के लिए तो कहना ही क्या है?) महाराज! निश्चय ही आपके राज्य की किसी सीमा पर कोई दुष्ट बुद्धि वाला शूद्र बड़ी तपस्या करके तप कर रहा है, उसी के कारण इस बालक की मृत्यु हुई है। २८ १/२॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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