आमिषं यच्च पूर्वेषां राजसं च मलं भृशम्।
अनृतं नाम तद् भूतं पादेन पृथिवीतले॥ १७॥
अनुवाद
सत्ययुग में जीविका का साधनभूत कृषि आदि कर्म रजोगुणमूलक थे और मल के समान अत्यन्त त्याज्य माने जाते थे। उसी अनृत को अधर्म का एक अंग माना गया है, जो त्रेतायुग में पृथ्वी पर दृढ़ता से स्थापित हो गया।