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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 7: उत्तर काण्ड
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सर्ग 70: देवताओं से वरदान पा शत्रुघ्न का मधुरापुरी को बसाकर बारहवें वर्ष में वहाँ से श्रीराम के पास जाने का विचार करना
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श्लोक 14
श्लोक
7.70.14
तां पुरीं दिव्यसंकाशां नानापण्योपशोभिताम्।
नानादेशगतैश्चापि वणिग्भिरुपशोभिताम्॥ १४॥
अनुवाद
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वह अद्भुत नगरी, जो विभिन्न प्रकार के व्यापार-योग्य वस्तुओं से सुशोभित थी, अनेक देशों से आये हुए व्यापारियों से भी शोभायमान हो रही थी।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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