दिव्य दृष्टि वाले देवताओं, ऋषियों, नागों और सभी अप्सराओं ने हर्षपूर्वक विजयी दशरथनंदन शत्रुघ्न की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उनका कहना था कि "यह कितनी सौभाग्य की बात है कि शत्रुघ्न ने भय त्यागकर विजय प्राप्त की और अंत में वह सर्प के समान लवणासुर मर गया।"
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे एकोनसप्ततितम: सर्ग: ॥ ६ ९॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें उनहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ६ ९॥