श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 67: च्यवन मुनि का शत्रुघ्न को लवणासुर के शूल की शक्ति का परिचय देते हुए राजा मान्धाता के वध का प्रसंग सुनाना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  7.67.4 
 
 
असंख्येयानि कर्माणि यान्यस्य रघुनन्दन।
इक्ष्वाकुवंशप्रभवे यद् वृत्तं तच्छृणुष्व मे॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  रघुनन्दन! लवणासुर ने असंख्य कर्म किए हैं। इनमें से एक कर्म इक्ष्वाकुवंश के राजा मान्धाता के साथ हुआ था। उसे तुम मेरे मुंह से सुनो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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