श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 67: च्यवन मुनि का शत्रुघ्न को लवणासुर के शूल की शक्ति का परिचय देते हुए राजा मान्धाता के वध का प्रसंग सुनाना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  7.67.15 
 
 
आमन्त्र्य तु सहस्राक्षं प्रायात् किंचिदवाङ्मुख:।
पुनरेवागमच्छ्रीमानिमं लोकं नरेश्वर:॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  सहस्राक्ष इंद्र से विदा लेकर, वे नरेश थोड़े से मुँह लटकाकर वहाँ से चल दिए और फिर से इस मनुष्यों के लोक में पहुँच गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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