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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 7: उत्तर काण्ड
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सर्ग 61: ऋषियों का मधु को प्राप्त हुए वर तथा लवणासुर के बल और अत्याचार का वर्णन करके उससे प्राप्त होनेवाले भय को दूर करने के लिये श्रीरघुनाथजी से प्रार्थना करना
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श्लोक 22
श्लोक
7.61.22
बहव: पार्थिवा राम भयार्तैर्ऋषिभि: पुरा।
अभयं याचिता वीर त्रातारं न च विद्महे॥ २२॥
अनुवाद
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हे श्रीराम! भयभीत ऋषियों ने आज से पहले अनेक राजाओं के पास जाकर अभयदान की भीख माँगी है लेकिन, वीर रघुवीर! अब तक हमें कोई रक्षक नहीं मिला।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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