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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 7: उत्तर काण्ड
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सर्ग 61: ऋषियों का मधु को प्राप्त हुए वर तथा लवणासुर के बल और अत्याचार का वर्णन करके उससे प्राप्त होनेवाले भय को दूर करने के लिये श्रीरघुनाथजी से प्रार्थना करना
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श्लोक 21
श्लोक
7.61.21
एवंप्रभावो लवण: शूलं चैव तथाविधम्।
श्रुत्वा प्रमाणं काकुत्स्थ त्वं हि न: परमा गति:॥ २१॥
अनुवाद
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लवणासुर का प्रभाव अत्यंत प्रबल है और उसके पास वैसा ही शक्तिशाली शूल भी है। रघुनंदन! ये सारी बातें सुनकर वही कार्य करना उचित है जिसका विचार आप करें और वही हमारी परम गति है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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