श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 61: ऋषियों का मधु को प्राप्त हुए वर तथा लवणासुर के बल और अत्याचार का वर्णन करके उससे प्राप्त होनेवाले भय को दूर करने के लिये श्रीरघुनाथजी से प्रार्थना करना  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  7.61.19 
 
 
स विहाय इमं लोकं प्रविष्टो वरुणालयम्।
शूलं निवेश्य लवणे वरं तस्मै न्यवेदयत्॥ १९॥
 
 
अनुवाद
 
  अंत में, वह इस देश को छोड़कर समुद्र में निवास करने चला गया। जाते समय उसने अपना शूल लवण को दे दिया और उसे वरदान के बारे में भी बता दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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