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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 7: उत्तर काण्ड
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सर्ग 61: ऋषियों का मधु को प्राप्त हुए वर तथा लवणासुर के बल और अत्याचार का वर्णन करके उससे प्राप्त होनेवाले भय को दूर करने के लिये श्रीरघुनाथजी से प्रार्थना करना
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श्लोक 18
श्लोक
7.61.18
तं पुत्रं दुर्विनीतं तु दृष्ट्वा क्रोधसमन्वित:।
मधु: स शोकमापेदे न चैनं किंचिदब्रवीत्॥ १८॥
अनुवाद
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मधु अपने पुत्र को उद्दण्डता करते देख क्रोधित और दु:खी था, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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