श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 60: श्रीराम के दरबार में च्यवन आदि ऋषियों का शुभागमन, श्रीराम के द्वारा उनका सत्कार करके उनके अभीष्ट कार्य को पूर्ण करने की प्रतिज्ञा तथा ऋषियों द्वारा उनकी प्रशंसा  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  7.60.16 
 
 
ऊचुश्चैव महात्मानो हर्षेण महता वृता:।
उपपन्नं नरश्रेष्ठ तवैव भुवि नान्यत:॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  तब वे सभी महात्मा अत्यंत हर्ष और आनंद के साथ बोले, "नरश्रेष्ठ! इस पृथ्वी पर इस तरह की बातें केवल आप ही कह सकते हैं। किसी अन्य व्यक्ति के मुख से इस प्रकार की बातें निकलना असंभव है।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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