श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 60: श्रीराम के दरबार में च्यवन आदि ऋषियों का शुभागमन, श्रीराम के द्वारा उनका सत्कार करके उनके अभीष्ट कार्य को पूर्ण करने की प्रतिज्ञा तथा ऋषियों द्वारा उनकी प्रशंसा  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  7.60.15 
 
 
तस्य तद् वचनं श्रुत्वा साधुकारो महानभूत्।
ऋषीणामुग्रतपसां यमुनातीरवासिनाम्॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीरघुनाथजी के वे वचन सुनकर यमुना नदी के किनारे निवास करने वाले उन उग्र तपस्वी महर्षियों ने ऊँचे स्वर में उनका गुणगान किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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