श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 60: श्रीराम के दरबार में च्यवन आदि ऋषियों का शुभागमन, श्रीराम के द्वारा उनका सत्कार करके उनके अभीष्ट कार्य को पूर्ण करने की प्रतिज्ञा तथा ऋषियों द्वारा उनकी प्रशंसा  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  7.60.12 
 
 
उपविष्टानृषींस्तत्र दृष्ट्वा परपुरंजय:।
प्रयत: प्राञ्जलिर्भूत्वा राघवो वाक्यमब्रवीत्॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  तब शत्रुओं की नगरी पर विजय प्राप्त करने वाले श्रीरघुनाथजी ने आसनों पर विराजमान उन महर्षियों को देखकर हाथ जोड़ संयत भाव से कहा-।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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