श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 60: श्रीराम के दरबार में च्यवन आदि ऋषियों का शुभागमन, श्रीराम के द्वारा उनका सत्कार करके उनके अभीष्ट कार्य को पूर्ण करने की प्रतिज्ञा तथा ऋषियों द्वारा उनकी प्रशंसा  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  7.60.1 
 
 
तयो: संवदतोरेवं रामलक्ष्मणयोस्तदा।
वासन्तिकी निशा प्राप्ता न शीता न च घर्मदा॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  तब श्रीराम और लक्ष्मण परस्पर इस तरह कथावार्ता करते हुए प्रतिदिन प्रजापालन के कार्य में लगे रहते थे। एक समय बसंत ऋतु की रात आई, जो न अधिक सर्दी लाने वाली थी और न गर्मी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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