गरुड़ के पंखों से आने वाली हवा के तेज झोंकों से राक्षसों की सेना अस्त-व्यस्त हो गई। सैनिकों के रथों पर लगी हुई पताकाएँ हवा में फहराने लगीं और उनके हाथों से हथियार छूट गए। राक्षसराज माल्यवान की पूरी सेना काँप उठी। उसे देखने पर ऐसा लग रहा था जैसे नीले पर्वत की चोटियाँ अपनी चट्टानों को बिखेरती हुई हिल रही हों।