श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 6: देवताओं का भगवान् शङ्कर की सलाह से राक्षसों के वध के लिये भगवान् विष्णुकी शरण में जाना और उनसे आश्वासन पाकर लौटना, राक्षसों का देवताओं पर आक्रमण और भगवान् विष्णु का उनकी सहायता के लिये आना  »  श्लोक 69
 
 
श्लोक  7.6.69 
 
 
सुपर्णपक्षानिलनुन्नपक्षं
भ्रमत्पताकं प्रविकीर्णशस्त्रम्।
चचाल तद्राक्षसराजसैन्यं
चलोपलं नीलमिवाचलाग्रम्॥ ६९॥
 
 
अनुवाद
 
  गरुड़ के पंखों से आने वाली हवा के तेज झोंकों से राक्षसों की सेना अस्त-व्यस्त हो गई। सैनिकों के रथों पर लगी हुई पताकाएँ हवा में फहराने लगीं और उनके हाथों से हथियार छूट गए। राक्षसराज माल्यवान की पूरी सेना काँप उठी। उसे देखने पर ऐसा लग रहा था जैसे नीले पर्वत की चोटियाँ अपनी चट्टानों को बिखेरती हुई हिल रही हों।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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