श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 6: देवताओं का भगवान् शङ्कर की सलाह से राक्षसों के वध के लिये भगवान् विष्णुकी शरण में जाना और उनसे आश्वासन पाकर लौटना, राक्षसों का देवताओं पर आक्रमण और भगवान् विष्णु का उनकी सहायता के लिये आना  »  श्लोक 63-64h
 
 
श्लोक  7.6.63-64h 
 
 
स सज्जायुधतूणीरो वैनतेयोपरि स्थित:॥ ६३॥
आसाद्य कवचं दिव्यं सहस्रार्कसमद्युति।
 
 
अनुवाद
 
  स सहस्रों सूर्यों के समान दीप्तिमान् दिव्य कवच धारण करके बाणों से भरा तरकस लिये गरुड़ पर सवार होकर शस्त्रों से सज्जित हो गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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