श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 6: देवताओं का भगवान् शङ्कर की सलाह से राक्षसों के वध के लिये भगवान् विष्णुकी शरण में जाना और उनसे आश्वासन पाकर लौटना, राक्षसों का देवताओं पर आक्रमण और भगवान् विष्णु का उनकी सहायता के लिये आना  »  श्लोक 55
 
 
श्लोक  7.6.55 
 
 
अट्टहासान् विमुञ्चन्तो घननादसमस्वना:।
वाश्यन्त्यश्च शिवास्तत्र दारुणं घोरदर्शना:॥ ५५॥
 
 
अनुवाद
 
  मेघ के समान गड़गड़ाहट करने वाले प्राणी जोर-जोर से हँसने लगे और भयंकर दिखने वाली गीदड़ें ज़ोर से रोने लगीं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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