श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 59: ययाति का अपने पुत्र पूरु को अपना बुढ़ापा देकर बदले में उसका यौवन लेना और भोगों से तृप्त होकर पुनः दीर्घकाल के बाद उसे उसका यौवन लौटा देना, पूरु का अपने पिता की गद्दी पर अभिषेक तथा यदु को शाप  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  7.59.8 
 
 
पूरोर्वचनमाज्ञाय नाहुष: परया मुदा।
प्रहर्षमतुलं लेभे जरां संक्रामयच्च ताम्॥ ८॥
 
 
अनुवाद
 
  पूरु के इस स्वीकृति भरे वचन को सुनकर नहुष कुमार ययाति अति प्रसन्न हुए। उन्हें अतुलनीय हर्ष प्राप्त हुआ और उन्होंने अपनी वृद्धावस्था पूरु के शरीर में स्थानांतरित कर दी।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.