जैसा कि श्रीराम चंद्रमा के समान मनमोहक मुख के साथ अपनी कथा कह रहे थे, आकाश में तारों की संख्या कम होने लगी और पूर्वी क्षितिज अरुण किरणों से लाल होने लगा, मानो उसने कुसुम के रंग में रंगे हुए अरुण वस्त्र से अपने अंगों को ढक लिया हो।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे एकोनषष्टितम: सर्ग: ॥ ५ ९॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें उनसठवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ५ ९॥