श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 59: ययाति का अपने पुत्र पूरु को अपना बुढ़ापा देकर बदले में उसका यौवन लेना और भोगों से तृप्त होकर पुनः दीर्घकाल के बाद उसे उसका यौवन लौटा देना, पूरु का अपने पिता की गद्दी पर अभिषेक तथा यदु को शाप  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  7.59.22 
 
 
एतत् ते सर्वमाख्यातं दर्शनं सर्वकारिणाम्।
अनुवर्तामहे सौम्य दोषो न स्याद् यथा नृगे॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  सौम्य! यह समस्त प्रसंग मैंने तुमको सुना दिया है। समस्त कृत्यों का पालन करने वाले सज्जनों की दृष्टि (विचार) का ही हम अनुसरण करते हैं जिससे राजा नृग की तरह हमें भी दोष प्राप्त न हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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