एतत् ते सर्वमाख्यातं दर्शनं सर्वकारिणाम्।
अनुवर्तामहे सौम्य दोषो न स्याद् यथा नृगे॥ २२॥
अनुवाद
सौम्य! यह समस्त प्रसंग मैंने तुमको सुना दिया है। समस्त कृत्यों का पालन करने वाले सज्जनों की दृष्टि (विचार) का ही हम अनुसरण करते हैं जिससे राजा नृग की तरह हमें भी दोष प्राप्त न हो।