श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 59: ययाति का अपने पुत्र पूरु को अपना बुढ़ापा देकर बदले में उसका यौवन लेना और भोगों से तृप्त होकर पुनः दीर्घकाल के बाद उसे उसका यौवन लौटा देना, पूरु का अपने पिता की गद्दी पर अभिषेक तथा यदु को शाप  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  7.59.21 
 
 
एष तूशनसा मुक्त: शापोत्सर्गो ययातिना।
धारित: क्षत्रधर्मेण यं निमिश्चक्षमे न च॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  ययाति ने जिस तरह शुक्राचार्य के शाप को सहन किया, वैसा निमि ने वसिष्ठजी के शाप को सहन नहीं किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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