श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 59: ययाति का अपने पुत्र पूरु को अपना बुढ़ापा देकर बदले में उसका यौवन लेना और भोगों से तृप्त होकर पुनः दीर्घकाल के बाद उसे उसका यौवन लौटा देना, पूरु का अपने पिता की गद्दी पर अभिषेक तथा यदु को शाप  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  7.59.18 
 
 
तत: कालेन महता दिष्टान्तमुपजग्मिवान्।
त्रिदिवं स गतो राजा ययातिर्नहुषात्मज:॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  तदुपरांत काफी समय बीत जाने के बाद जब प्रारब्ध कर्मों का प्रभाव समाप्त हो गया, तो राजा ययाति ने देह त्याग दी और स्वर्गलोक को प्रस्थान कर गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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