श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 59: ययाति का अपने पुत्र पूरु को अपना बुढ़ापा देकर बदले में उसका यौवन लेना और भोगों से तृप्त होकर पुनः दीर्घकाल के बाद उसे उसका यौवन लौटा देना, पूरु का अपने पिता की गद्दी पर अभिषेक तथा यदु को शाप  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  7.59.16 
 
 
न तु सोमकुलोत्पन्ने वंशे स्थास्यति दुर्मते:।
वंशोऽपि भवतस्तुल्यो दुर्विनीतो भविष्यति॥ १६॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘तुम्हारी बुद्धि बहुत खोटी है। अत: तुम्हारी संतान सोमकुलमें उत्पन्न वंशपरम्परामें राजाके रूपसे प्रतिष्ठित नहीं होगी। तुम्हारी संतति भी तुम्हारे ही समान उद्दण्ड होगी’॥ १६॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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