श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 59: ययाति का अपने पुत्र पूरु को अपना बुढ़ापा देकर बदले में उसका यौवन लेना और भोगों से तृप्त होकर पुनः दीर्घकाल के बाद उसे उसका यौवन लौटा देना, पूरु का अपने पिता की गद्दी पर अभिषेक तथा यदु को शाप  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  7.59.15 
 
 
पितरं गुरुभूतं मां यस्मात् त्वमवमन्यसे।
राक्षसान् यातुधानांस्त्वं जनयिष्यसि दारुणान्॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  मैं तुम्हारा पिता भी हूँ और गुरु भी, फिर भी तुम मेरा हर संभव अपमान करते हो, इसलिए तुम ऐसे निर्मम राक्षसों और भयावह यातुधानों को जन्म दोगे जिनसे पृथ्वी पर घोर संहार होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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