श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 59: ययाति का अपने पुत्र पूरु को अपना बुढ़ापा देकर बदले में उसका यौवन लेना और भोगों से तृप्त होकर पुनः दीर्घकाल के बाद उसे उसका यौवन लौटा देना, पूरु का अपने पिता की गद्दी पर अभिषेक तथा यदु को शाप  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  7.59.13 
 
 
एवमुक्त्वा सुतं पूरुं ययातिर्नहुषात्मज:।
देवयानीसुतं क्रुद्धो राजा वाक्यमुवाच ह॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  पूरु से ऐसा कहकर, ययाति, नहुष के पुत्र, देवयानी के बेटे के प्रति क्रोधित होकर बोले।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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