श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 59: ययाति का अपने पुत्र पूरु को अपना बुढ़ापा देकर बदले में उसका यौवन लेना और भोगों से तृप्त होकर पुनः दीर्घकाल के बाद उसे उसका यौवन लौटा देना, पूरु का अपने पिता की गद्दी पर अभिषेक तथा यदु को शाप  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  7.59.12 
 
 
प्रीतश्चास्मि महाबाहो शासनस्य प्रतिग्रहात्।
त्वां चाहमभिषेक्ष्यामि प्रीतियुक्तो नराधिपम्॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  महाबाहो! तुमने मेरी आज्ञा मानकर मुझे बहुत प्रसन्नता प्रदान की। इसलिए, मैं तुम्हें बड़े प्रेम के साथ राजा के पद पर अभिषेक करूँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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