श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 59: ययाति का अपने पुत्र पूरु को अपना बुढ़ापा देकर बदले में उसका यौवन लेना और भोगों से तृप्त होकर पुनः दीर्घकाल के बाद उसे उसका यौवन लौटा देना, पूरु का अपने पिता की गद्दी पर अभिषेक तथा यदु को शाप  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  7.59.1 
 
 
श्रुत्वा तूशनसं क्रुद्धं तदार्तो नहुषात्मज:।
जरां परमिकां प्राप्य यदुं वचनमब्रवीत्॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  शुक्राचार्य के क्रुद्ध होने का समाचार पाकर नहुष के पुत्र ययाति को बहुत दुःख हुआ। उन्हें ऐसी विकट और अत्यधिक वृद्धावस्था प्राप्त हुई, जो दूसरे की जवानी से बदलने योग्य थी। उस विचित्र और अद्भुत वृद्धावस्था को पाकर राजा ययाति ने अपने पुत्र यदु से कहा-
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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