स एवमुक्त्वा द्विजपुङ्गवाग्रॺ:
सुतां समाश्वास्य च देवयानीम्।
पुनर्ययौ सूर्यसमानतेजा
दत्त्वा च शापं नहुषात्मजाय॥ २५॥
अनुवाद
द्विजशिरोमणियों में सर्वश्रेष्ठ शुक्राचार्य ने सूर्य के समान तेजस्वी होते हुए देवयानी को आश्वस्त किया और फिर नहुष पुत्र ययाति को पूर्वोक्त शाप देकर वहाँ से चले गए।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डेऽष्टपञ्चाश: सर्ग: ॥ ५ ८॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें अट्ठावनवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ५ ८॥