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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 58: ययाति को शुक्राचार्य का शाप
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श्लोक 24
श्लोक
7.58.24
एवमुक्त्वा दुहितरं समाश्वास्य स भार्गव:।
पुनर्जगाम ब्रह्मर्षिर्भवनं स्वं महायशा:॥ २४॥
अनुवाद
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देवताओं के गुरु महायशस्वी ब्रह्मर्षि शुक्राचार्य, बेटी को आश्वासन देकर राजा से इस प्रकार से बातें करके फिर से अपने घर चले गए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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