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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 58: ययाति को शुक्राचार्य का शाप
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श्लोक 23
श्लोक
7.58.23
यस्मान्मामवजानीषे नाहुष त्वं दुरात्मवान्।
वयसा जरया जीर्ण: शैथिल्यमुपयास्यसि॥ २३॥
अनुवाद
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‘नहुषकुमार! तुम दुरात्मा होनेके कारण मेरी अवहेलना करते हो, इसलिये तुम्हारी अवस्था जरा-जीर्ण वृद्धके समान हो जायगी—तुम सर्वथा शिथिल हो जाओगे’॥ २३॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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