श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 54: राजा नृग का एक सुन्दर गड्ढा बनवाकर अपने पुत्र को राज्य दे स्वयं उसमें प्रवेश करके शाप भोगना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  7.54.4 
 
 
लक्ष्मणेनैवमुक्तस्तु राघव: पुनरब्रवीत्।
शृणु सौम्य यथा पूर्वं स राजा शापविक्षत:॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण जी के इस प्रकार पूछने पर श्री रघुनाथ जी ने फिर कहा - हे सौम्य! पूर्वकाल में शापग्रस्त होकर राजा नृग ने जो कुछ कहा था, उसे बताता हूँ, तुम सुनो॥ ४॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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