श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 54: राजा नृग का एक सुन्दर गड्ढा बनवाकर अपने पुत्र को राज्य दे स्वयं उसमें प्रवेश करके शाप भोगना  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  7.54.3 
 
 
श्रुत्वा तु पापसंयुक्तमात्मानं पुरुषर्षभ।
किमुवाच नृगो राजा द्विजौ क्रोधसमन्वितौ॥ ३॥
 
 
अनुवाद
 
  पुरुषश्रेष्ठ राजा नृग ने क्रोधित ब्राह्मणों द्वारा शाप के रूप में पाप से अपने को संयुक्त हुआ सुनकर उनसे क्या कहा?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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