श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 51: मार्ग में सुमन्त्र का दुर्वासा के मुख से सुनी हुर्इ भृगुऋषि के शाप की कथा कहकर तथा भविष्य में होनेवाली कुछ बातें बताकर दुःखी लक्ष्मण को शान्त करना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  7.51.30 
 
 
तत: संवदतोरेवं सूतलक्ष्मणयो: पथि।
अस्तमर्के गते वासं केशिन्यां तावथोषतु:॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  सूर्य अस्त होने को थे और सुमन्त्र और लक्ष्मण मार्ग में वार्तालाप कर रहे थे। अंततः उन्होंने केशिनी नदी के तट पर रात्रि विश्राम किया।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये उत्तरकाण्डे एकपञ्चाश: सर्ग: ॥ ५ १॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके उत्तरकाण्डमें इक्यावनवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ५ १॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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