श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 51: मार्ग में सुमन्त्र का दुर्वासा के मुख से सुनी हुर्इ भृगुऋषि के शाप की कथा कहकर तथा भविष्य में होनेवाली कुछ बातें बताकर दुःखी लक्ष्मण को शान्त करना  »  श्लोक 29
 
 
श्लोक  7.51.29 
 
 
श्रुत्वा तु व्याहृतं वाक्यं सूतस्य परमाद्भुतम्।
प्रहर्षमतुलं लेभे साधु साध्विति चाब्रवीत्॥ २९॥
 
 
अनुवाद
 
  सुत सुमन्त्र के मुख से यह परम आश्चर्यजनक बात सुनकर लक्ष्मण को अद्वितीय हर्ष प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा - बहुत अच्छा, बहुत अच्छा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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