श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 51: मार्ग में सुमन्त्र का दुर्वासा के मुख से सुनी हुर्इ भृगुऋषि के शाप की कथा कहकर तथा भविष्य में होनेवाली कुछ बातें बताकर दुःखी लक्ष्मण को शान्त करना  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  7.51.28 
 
 
एवं गते न संतापं कर्तुमर्हसि राघव।
सीतार्थे राघवार्थे वा दृढो भव नरोत्तम॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  नरश्रेष्ठ श्रीराम! इसे विधाता की इच्छा ही मानकर आपको सीता और भगवान रघुनाथ के लिए चिंता नहीं करनी चाहिए। आप धैर्य से काम लें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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