श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 51: मार्ग में सुमन्त्र का दुर्वासा के मुख से सुनी हुर्इ भृगुऋषि के शाप की कथा कहकर तथा भविष्य में होनेवाली कुछ बातें बताकर दुःखी लक्ष्मण को शान्त करना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  7.51.25 
 
 
तूष्णींभूते तदा तस्मिन् राजा दशरथो मुनौ।
अभिवाद्य महात्मानौ पुनरायात् पुरोत्तमम्॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  उसके बाद दुर्वासा मुनि का क्रोध शांत हुआ तब महाराजा दशरथ ने दोनों महात्माओं के चरणों में प्रणाम किया और फिर अपने उत्तम नगर अयोध्या को लौट आये।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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