श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 51: मार्ग में सुमन्त्र का दुर्वासा के मुख से सुनी हुर्इ भृगुऋषि के शाप की कथा कहकर तथा भविष्य में होनेवाली कुछ बातें बताकर दुःखी लक्ष्मण को शान्त करना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  7.51.14 
 
 
ततस्तां निहतां दृष्ट्वा पत्नीं भृगुकुलोद्वह:।
शशाप सहसा क्रुद्धो विष्णुं रिपुकुलार्दनम्॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  अपनी पत्नी की हत्या होते देख भृगु वंश के संस्थापक भृगु क्रोधित हो गए और शत्रु कुल का नाश करने वाले भगवान विष्णु को शाप दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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