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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 7: उत्तर काण्ड
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सर्ग 51: मार्ग में सुमन्त्र का दुर्वासा के मुख से सुनी हुर्इ भृगुऋषि के शाप की कथा कहकर तथा भविष्य में होनेवाली कुछ बातें बताकर दुःखी लक्ष्मण को शान्त करना
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श्लोक 13
श्लोक
7.51.13
तया परिगृहीतांस्तान् दृष्ट्वा क्रुद्ध: सुरेश्वर:।
चक्रेण शितधारेण भृगुपत्न्या: शिरोऽहरत्॥ १३॥
अनुवाद
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दैत्यों को आश्रय देती देख भगवान विष्णु क्रोधित हो गए और अपने तीखे चक्र से भृगुपत्नी का सिर काट लिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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