श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 7: उत्तर काण्ड  »  सर्ग 51: मार्ग में सुमन्त्र का दुर्वासा के मुख से सुनी हुर्इ भृगुऋषि के शाप की कथा कहकर तथा भविष्य में होनेवाली कुछ बातें बताकर दुःखी लक्ष्मण को शान्त करना  »  श्लोक 11-12
 
 
श्लोक  7.51.11-12 
 
 
शृणु राजन् पुरा वृत्तं तदा देवासुरे युधि॥ ११॥
दैत्या: सुरैर्भर्त्स्यमाना भृगुपत्नीं समाश्रिता:।
तया दत्ताभयास्तत्र न्यवसन्नभयास्तदा॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  भगवन! एक बार देवासुर संग्राम के समय देवताओं से पीड़ित हुए दैत्य महर्षि भृगु की पत्नी के यहां शरण में गए। भृगुपत्नी ने उस वक्त दैत्यों को अभयदान दिया। वे उनके आश्रम में निर्भयतापूर्वक रहने लगे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.