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श्लोक 8
श्लोक
7.50.8
को नु धर्माश्रय: सूत कर्मण्यस्मिन् यशोहरे।
मैथिलीं समनुप्राप्त: पौरैर्हीनार्थवादिभि:॥ ८॥
अनुवाद
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सूत जी! श्रीरामचन्द्र जी ने सीता जी के बारे में निंदा करने वाले इन्हीं पौरवासियों के कारण कीर्तिनाशक कर्म में प्रवृत्त होकर किस धर्म की प्राप्ति की है?
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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